Saturday, 21 March 2015

भोजपुरी सिनेमा में क्रांति लाने वाली फिल्म है पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई-2 - रवि किशन

‘‘पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई’ जब बन रही थी, तो न तो निर्माता-निर्देशक मोहन जी प्रसाद को ही इसका आभास था, ना ही नायक रवि किशन ही सोच पाये थे कि यह फिल्म उनको स्टारडम के शिखर पर धु्रव तारे की मानिंद टांक देगी। लेकिन, जब फिल्म प्रदर्शित हुई तो इन दोनों के साथ पूरा पूर्वोत्तर क्षेत्र एक सुखद आश्चर्य में मदमस्त होने लगा, नायिका नगमा भी इतनी बड़ी स्टार बन गयी, जितनी बड़ी कभी दक्षिण की फिल्मों में या हिन्दी में नहीं थीं। रवि नगमा की जोड़ी तो सफलता मुहर जैसी हो गयी। रवि किशन के व्यक्तित्व में रवि का तेज और किशन की कलाबाज़ी दर्शकों को ही नहीं, फिल्मकारों को अपना दीवाना बना दिया। जब ‘पंडित की शूटिंग चल रही थी, किसी पत्रकार ने टीनू वर्मा से रवि किशन के बारे में उनकी राय जानने की इच्छा व्यक्त की। टीनू वर्मा ने कहा था- भोजपुरी सिनेमा में एक तो है, जो सबसे बड़ा एक्टर है, सबका स्टार है। वह वन एंड ओनली रवि किशन है। स्टारडम और सफलता की सारी ऊँचाइयाँ पार कर चुके वही रवि किशन आज फिर उन स्वर्णिम दिनों की स्मृति को फिर से मूर्Ÿा रूप देने के लिए एक निर्माता के रूप में, एक स्टार-एक्टर के रूप में एक बहुत ख़ूबसूरत, मनोरंजक फिल्म लेकर आ रहे हैं, जिसका शीर्षक भी वही है-‘‘पंडित जी बताईं ना बियाह कब होई।’’ लेकिन, यह वही फिल्म नहीं है, अलग है, दूसरी है। सच में इसमें क्या-क्या है और रवि ने इस फिल्म के निर्माण की योजना क्यों/कैसे बनायी इसको लेकर उनके कार्यालय में कवि-गीतकार व वरिष्ठ  पत्रकार उमेश सिंह चंदेल ने उनसे बेबाक बातचीत की। प्रस्तुत हैं, उस वार्तालाप के सम्पादित अंशः-
ऽ ‘‘पंडित जी बताईं ना.....’’ क्या आपकी इस नामवाली पहली सुपरहिट फिल्म का सीक्वल है या रीमेक ?
यह न तो सीक्वल है, न ही रीमेक। ‘पंडित जी बताई ना बियाह कब होई’’ बिल्कुल ही अलग फिल्म है। यह फुल-टू-धमाल एंटरटेनर है।
ऽ लेकिन, इस शीर्षक में ‘टू’ जोड़ने का क्या अर्थ ?
टू या दो का अर्थ है कि यह रवि किशन की फिल्म तो है, लेकिन, मोहन जी प्रसाद की नहीं, बल्कि, रवि किशन फिल्म प्रोडक्शन की नयी फिल्म है। दुविधा न हो, इसलिए इसे अलग रखने के लिए ऐसा किया।
ऽ लेकिन, आपने फिल्म-निर्माण की क्यों सोची?
‘‘मुझे जिस सिनेमा ने सुपर स्टार बनाया, जिस सिनेमा ने जन-जन का चहेता-दुलारा बनाया, उस इंडस्ट्री के लिए भी कुछ करना मेरा धर्म बनता है। इसलिए मैंने सोचा, कुछ ऐसा किया जाये कि कोई नया रास्ता मिले।
ऽ फिर इस फिल्म से आपकी ढेर सारी उम्मीदें जुड़ी होंगी ?
बेशक! और ईश्वर की कृपा से, दर्शकों के प्यार से मैंने एक ऐसी फिल्म बना दी है, जो भोजपुरी सिनेमा में क्रांति ला देगी। यह फिल्म अच्छी और सार्थक फिल्म बनाने के लिए दूसरे फिल्म मेकरों को भी उत्साहित करेगी।
ऽ क्या यह समानांतर सिनेमा शैली की फिल्म है ?
बिल्कुल नहीं। अभी वह माहौल नहीं बना है, परिवेश वैसा नहींे है कि उस तरह की फिल्में बनायी जाएं। भोजपुरी फिल्म लगानेवाले थियेटर मालिकों को सिर्फ पैसे कमाने से मतलब है, कौन दीवार पर पान खाकर ‘पिच्च’ कर रहा है, किस कुर्सी में खटमल आतंक मचाए हुए हैं, उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं। हाँ ऐसा सोचता तो हूँ, पर, कभी मौका मिला तो फिल्मोत्सवों के लिए ऐसी फिल्म बनाऊँगा ज़रूर।
ऽ इतनी बड़ी महत्वाकांक्षा लेकर आपने फिल्म शुरू की और इसमें निर्देशक भी नया लिया, अपनी नायिका भी नयी ली। दोनों भोजपुरी भाषा, क्षेत्र, संस्कार से अनभिज्ञ हैं?
दोनों का चुनाव मैंने काफी खोजबीन के बाद किया। निर्देशक के रूप में प्रशांत (जम्मूवाला) का चयन इस फिल्म के लिए सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट है, पं. बिरजू महाराज की नातिन सिंजिनी नयी है पर कमाल की परफाॅर्मर है। मुझे  नया काॅन्सेप्ट, नया निर्देशक, नयी नायिका- सबकुछ फ्रैश चाहिए था, लेकिन सबका अलग और यूनिक होना भी जरूरी था। प्रशांत में वह सबकुछ है, जो एक जोशीले और महत्वाकांक्षी डायरेक्टर में होना चाहिए। उसने पंजाबी फिल्में बनाकर इसका उदाहरण दिया है। सिंजिनी (कुलकर्णी) की माँ से हमारा पारिवारिक संबंध है। लेकिन, उसका चयन भी कई दर्जन  लड़कियों के रिजेक्शन के पश्चात हुआ। आज हमें गर्व है कि हमने एक अच्छी टीम बनायी है।
ऽ जिसकी इतनी प्रशंसा हो रही है, उस फिल्म को एक पंक्ति में बताएंगे?
एक साइकिल मैकेनिक का बेटा बूटन यादव है। उसे एक लड़की से प्यार हो जाता है। लेकिन, उसे पाने के लिए कैसी-कैसी शर्तें उसके समक्ष रखी जाती हैं, उनको ही पाने की जंग है, यह फिल्म। अपने प्यार को पाने के लिए कोई पंक्चर साटने वाला भी क्या -क्या कर सकता है, कर गुज़रता है, यही है। इसे प्रशांत ने बड़ी चतुराई से, ख़ूबसूरती से सिल्वर स्क्रीन पर उतारा है।

ऽ फिल्म बाॅक्स आॅफिस पर कैसी जायेगी?
आपने शायद इसका ट्रेलर नहीं देखा। यू.ट्यूब पर तो इसने भूचाल ला दिया है। देखने वाले तो पागल हो रहे हैं। क्या ऐसी भी फिल्म बन सकती है भोजपुरी में? नीटू इकबाल का एक्शन तो कमाल का है। ऐसा एक्शन तो आपने कभी देखा न होगा।
ऽ इस फिल्म के बाद क्या-क्या हो रहा है ?
‘किक-2’ कर रहा हूँ। बंगलोर में शूटिंग है। दक्षिण में भी मेरी एक यूनिक इमेज है। तेलुगू के अलावा हिन्दी में चार और भोजपुरी में भी और दो फिल्में हैं।
ऽ आपकी पसंद की कुछ फिल्में....?
भोजपुरी में ‘कन्यादान’, ‘कब होई गवना हमार’, ‘पंडित जी बताई ना बियाह कब होई’, बिदाई और ‘सत्यमेव जयते’। हिन्दी में-‘तेरे नाम’, ‘वेलकम टू सज्जनपुर’, ‘लक’, ‘बुलेट राजा’ और ‘वेलडन अब्बा’। तेलुगू स्टार अल्लू अर्जुन के साथ ‘रेस गुर्रम’  (रेस का घोड़ा) ने 100 डेज मनाया था।
ऽ भोजपुरी सिनेमा ने आपको सुपर स्टार बनाया पर आपने भी इस इंडस्ट्री को बहुत कुछ दिया। पाठकों को कुछ स्मरण करायेंगे, आपने क्या-क्या किया?
मैंने वो सब किया, जो दूसरे करने में डरते रहे। कुणाल जी के बाद जो गैप आ गया था भोजपुरी सिनेमा में उस वक़्त केाई ‘सूटेबल एक्टर’ नहीं मिल रहा था।
मोहन जी प्रसाद ने मुझ पर दांव लगाया और मैं तो स्थापित हुआ ही उनका भी दबदबा फिर से क़ायम हो गया। मेरी फिल्म ‘‘कब होई गवना हमार’’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और वह कांस फिल्म के फेस्टिवल में भी दिखायी गयी।
ऽ पंडित जी बताई ना..........2’’ से भी कुछ उम्मीद करते हैं....?
हाँ, इसे भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिल सकेगा। फिल्म इतनी अच्छी और सशक्त है कि इसे अवश्य ही राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना चाहिए। प्रदर्शन के पश्चात् आप सभी स्वयं ही मेरी बात दोहरायेंगे।

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